पसायदान :

आता विश्चात्मके देवे, येणे वाग्यज्ञे तोषावे । तोषोनि मज द्यावे, पसायदान हे ।।१।।
जे खळांची व्यंकटी सांडो, तया सत्कर्मी रती वाढो । भूता परस्परे जडो, मैत्र जीवांचे ।।२।।
दुरितांचे तिमीर जावो, विश्व स्वधर्मसूर्ये पाहो । जो जे वांछील तो ते लाहो प्राणिजात ।।३।।
वर्षत सकळमंगळी, ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी । अनवरत भूमंडळी, भेटतु भूतां ।।४।।
चला कल्पतरूंचे आरव, चेतनाचिंतामणींचे गांव । बोलते जे अर्णव, पीयूषाचे ।।५।।
चंद्रमे जे अलांछन, मार्तंड जे तापहीन । ते सर्वांही सदा सज्जन, सोयरे होतु ।।६।।
किंबहुना सर्वसुखी, पूर्ण होऊनि तिहींलोकीं । भजि जो आदिपुरुखी, अखंडित ।।७।।
आणि ग्रंथोपजीविये, विशेषी लोकी इये । दृष्टादृष्ट विजये, होआवे जी ।।८।।
येथ म्हणे श्रीविश्वेशरावो, हा होईल दानपसावो । येणे वरे ज्ञानदेवो सुखिया झाला ।।९।।

संगठन की जानकारी :

श्री विठ्ठल वारकरी साधक संघ [ऋषिकेश, उत्तराखंड] भगवान श्री विठ्ठल तथा संतश्री ज्ञानेश्वर महाराजजी की कृपासे तथा स्वानंदसुखनिवसी सद्गुरू जोग महाराजजी की प्रेरणा से तथा प•पू• शांतिब्रम्ह मारोती महाराज कुरेकर (आळंदी देवाची,पुणे ,महाराष्ट्र )इनके आशीर्वाद से स्थापित श्री विठ्ठल वारकरी साधक संघ(SVVSS) यह गैर - राजनीतिक संघटन हैं। यह संघटन दशकाधिक समय से मानवतावादी, सामाजिक सेवा गतिविधियोके विभिन्न रुपोमे लगा हुआ हैं।त्याग और सेवा के आदर्शोसे प्रेरित होकर संघटन के कार्यकर्ता किसी जाती,धर्म, संप्रदाय,पंथ के भेद के बिना पुरे भारत- वर्ष की सेवा मे तत्पर हैं।.

हसंघटन कार्य: :

अपने घर-परिवार का पूर्णतया त्याग करके देश - विदेशोसे देवभूमी ऋषिकेश मे ब्रम्हविद्या की जिज्ञासा लेकर हजारो की संख्या मे संत महात्मा, मुमुक्षु,साधक,एवं श्रद्धालु भक्तगण आते हैं | यहाँ आकर के वैदिक संस्कृत शास्त्रोका अध्ययन - अध्यापन , अनुष्ठान,साधना,भजन, संकीर्तन,करते हैं। तत्कालीन समय मे ब्रम्हचारी , संत-महात्माओंकी भोजन तथा निवास की बहुत-ही जादा अव्यवस्था को देखते हुये संघटन ने इनकी भोजन व्यवस्था करने के लिये तत्काल अन्नक्षेत्र की स्थापना की। वर्तमान समय मे अन्नक्षेत्रमे प्रातः अल्पाहार तथा सायं - भोजन की व्यवस्था की जा रही हैं।भोजन व्यवस्था के लिये खर्च होनेवाली धनराशी आप सभी श्रद्धालु भक्तगणोके द्वारा प्राप्त होती हैं। अभी-भी धनराशि के अभाव से स्थायी रुपसे पूर्णभोजन की व्यवस्था नही हो पा रही हैं। अतः सभी दानशूर श्रद्धालु भक्तगणोसे नम्र निवेदन हैं की, इस पवित्र महायज्ञ मे अपनी धनरुपी आहुती प्रदान करके ईश्वर कृपा के पात्र बने ।

मुख्यालय:

यह संघटन हिमालयके पावन सानिध्य मे तथा भगवती गंगा मैय्या के तटपर देवभूमी ऋषिकेश मे स्थित हैं।

भाविष्यकालीन योजनाये :

भव्य निवास व्यवस्था, गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था, आरोग्य सुविधा, गोसंवर्धन।